::غزل ::
خدا سمجھے اسے، ظالم بنا ہے
ہمارا آپ کا حافظ خدا ہے
بدلتے موسموں کی رنجشیں ہیں
کہاں یہ حادثہ کوئی نیا ہے
ہواؤں کی طرف دیکھو تو جانیں
بدلتے موسموں کا سامنا ہے
بدل دو یہ نظامِ ظلم و نفرت
اگر انسانیت میں آستھا ہے
محافظ نے ہی چنگاری لگائی
کہیں نفرت سے کوئی گھر جلا ہے
نگل لے گا وہ شعلوں کو سمجھ لے
دھواں سا جو ابھی دل میں اُٹھا ہے
اُسی کی سب ہے گردش اور حکمت
وہی "تشنہ" ہے جو سب سے سَوا ہے
کلام : مسعود بیگ تشنہ
:: ग़ज़ल ::
ख़ुदा समझे उसे, ज़ालिम बना है
हमारा आप का हाफ़िज़ ख़ुदा है
बदलते मौसमों की रंजिशें हैं
कहां ये हादसा कोई नया है
हवाओं की तरफ़ देखो तो जानें
बदलते मौसमों का सामना है
बदल दो ये निज़ामे ज़ुल्म ओ नफ़रत
अगर इंसानीयत में आस्था है
मुहाफ़िज़ ने ही चिंगारी लगाई
कहीं नफ़रत से कोई घर जला है
निगल लेगा वो शोलों को समझ ले
धुआं सा जो मेरे दिल में उठा है
उसी की सब है गर्दिश और हिकमत
वही "तिश्ना" है जो सब से सवा है
कलाम : मसूद बेग तिश्ना
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