:: حق کی جانچ ::
(روحِ فیض احمد فیض سے معذرت کے ساتھ)
اک علم کی دانش گاہ سے یہاں
جب سرمدی نغمہ گونج اٹھا
'ہم دیکھینگے ہم دیکھینگے'
ہر حرفِ صداقت پھیل گیا
جب گرم لہو کے چھینٹوں سے
ہر حرفِ بغاوت پھیل گیا
گھبرا کے اُٹِھیں کالی روحیں
وہ بھٹکی ہوئی ساری روحیں
مذہب کا رائتہ بھر ڈالا
ہنگامہ بپا اک کر ڈالا
بس بس کی لگائیں آوازیں
تہمت کی لگائیں آوازیں
اب یہ نہ چلیگا کے نعرے
اب وہ نہ چلیگا کے نعرے
جب ضرب لگائی جائے گی
جب جانچ بٹھائی جائے گی
دانش کا جنازہ نکلیگا
حق پارہ پارہ نکلیگا
جب فیض کی نظم کے ظاہر سے
من چاہا پِٹارہ نکلیگا
جب فیض کی نظم کے باطن سے
حق پارہ پارہ نکلیگا
جب ضرب لگائی جائے گی
جب جانچ بٹھائی جائے گی
دانش کا جنازہ نکلیگا
حق پارہ پارہ نکلیگا
حق پارہ پارہ نکلیگا
کلام : مسعود بیگ تشنہ
:: हक़ की जांच ::
(रूहे फैज़ एहमद फैज़ से मोज़िरत के साथ)
एक इल्म की दानिशगाह से यहां
जब सर्मदी नग़मा गूंज उठा
'हम देखेंगे हम देखेंगे'
हर हर्फ़े सदाक़त फैल गया
जब गर्म लहू के छींटों से
हर हर्फ़े बग़ावत फैल गया
घबरा के उठीं काली रूहें
वो भटकी हुईं सारी रूहें
मज़हब का राएता भर डाला
हंगामा बपा एक कर डाला
बस बस की लगाईं आवाज़ें
तोह्मत की लगाई आवाज़ें
अब ये न चलेगा के नारे
अब वो न चलेगा के नारे
जब ज़र्ब लगाई जाएगी
जब जांच बिठाई जाएगी
दानिश का जनाज़ा निकलेगा
हक़ पारा पारा निकलेगा
जब फैज़ की नज़्म के ज़ाहिर से
मन चाहा पिटारा निकलेगा
जब फैज़ की नज़्म के बातिन से
हक़ पारा पारा निकलेगा
जब ज़र्ब लगाई जाएगी
जब जांच बिठाई जाएगी
दानिश का जनाज़ा निकलेगा
हक़ पारा पारा निकलेगा
हक़ पारा पारा निकलेगा
कलाम : मसूद बेग तिश्ना
(روحِ فیض احمد فیض سے معذرت کے ساتھ)
اک علم کی دانش گاہ سے یہاں
جب سرمدی نغمہ گونج اٹھا
'ہم دیکھینگے ہم دیکھینگے'
ہر حرفِ صداقت پھیل گیا
جب گرم لہو کے چھینٹوں سے
ہر حرفِ بغاوت پھیل گیا
گھبرا کے اُٹِھیں کالی روحیں
وہ بھٹکی ہوئی ساری روحیں
مذہب کا رائتہ بھر ڈالا
ہنگامہ بپا اک کر ڈالا
بس بس کی لگائیں آوازیں
تہمت کی لگائیں آوازیں
اب یہ نہ چلیگا کے نعرے
اب وہ نہ چلیگا کے نعرے
جب ضرب لگائی جائے گی
جب جانچ بٹھائی جائے گی
دانش کا جنازہ نکلیگا
حق پارہ پارہ نکلیگا
جب فیض کی نظم کے ظاہر سے
من چاہا پِٹارہ نکلیگا
جب فیض کی نظم کے باطن سے
حق پارہ پارہ نکلیگا
جب ضرب لگائی جائے گی
جب جانچ بٹھائی جائے گی
دانش کا جنازہ نکلیگا
حق پارہ پارہ نکلیگا
حق پارہ پارہ نکلیگا
کلام : مسعود بیگ تشنہ
:: हक़ की जांच ::
(रूहे फैज़ एहमद फैज़ से मोज़िरत के साथ)
एक इल्म की दानिशगाह से यहां
जब सर्मदी नग़मा गूंज उठा
'हम देखेंगे हम देखेंगे'
हर हर्फ़े सदाक़त फैल गया
जब गर्म लहू के छींटों से
हर हर्फ़े बग़ावत फैल गया
घबरा के उठीं काली रूहें
वो भटकी हुईं सारी रूहें
मज़हब का राएता भर डाला
हंगामा बपा एक कर डाला
बस बस की लगाईं आवाज़ें
तोह्मत की लगाई आवाज़ें
अब ये न चलेगा के नारे
अब वो न चलेगा के नारे
जब ज़र्ब लगाई जाएगी
जब जांच बिठाई जाएगी
दानिश का जनाज़ा निकलेगा
हक़ पारा पारा निकलेगा
जब फैज़ की नज़्म के ज़ाहिर से
मन चाहा पिटारा निकलेगा
जब फैज़ की नज़्म के बातिन से
हक़ पारा पारा निकलेगा
जब ज़र्ब लगाई जाएगी
जब जांच बिठाई जाएगी
दानिश का जनाज़ा निकलेगा
हक़ पारा पारा निकलेगा
हक़ पारा पारा निकलेगा
कलाम : मसूद बेग तिश्ना
No comments:
Post a Comment