تسطير بر شعر راحت اندوری :
نئے سفر کا جو اعلان بھی نہیں ہوتا
تو زندہ رہنے کا ارمان بھی نہیں ہوتا
(راحت اندوری)
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:: تسطیر ::
نئے سفر کا جو اعلان بھی نہیں ہوتا
مطب کو جانے کا فرمان بھی نہیں ہوتا
نہ سینہ دھونکنی بنتا، کلیجہ چھلنی ہی
فرشتہ موت کا دربان بھی نہیں ہوتا
جو اہلِ خانہ کا نہ کچھ وطن کا ہوتا قرض
تو زندہ رہنے کا ارمان بھی نہیں ہوتا
تسطیر نتیجۂ فکر : مسعود بیگ تشنہ
12 اگست 2020 ،اِندور ،انڈیا
तस्तीर बर शेर राहत इंदौरी
नए सफ़र का जो ऐलान भी नहीं होता
तो ज़िंदा रहने का अरमान भी नहीं होता
(राहत इंदौर)
:: तस्तीर ::
नए सफ़र का जो ऎलान भी नहीं होता
मतब को जाने का फ़रमान भी नहीं होता
न सीना धौंकनी बनता, कलेजा छलनी ही
फ़रिश्ता मौत का दरबान भी नहीं होता
जो एहले ख़ाना का न कुछ वतन का होता क़र्ज़
तो ज़िंदा रहने का अरमान भी नहीं होता
तस्तीर : नतीजा-ए- फ़िक्र मसूद बेग तिश्ना
12 अगस्त 2020, इंदौर, इंडिया
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