Saturday, January 1, 2022

Tasteer तस्तीर ‎تسطیر ‏

تسطير بر شعر راحت اندوری :
یہ سانحہ تو کسی دن گزرنے والا تھا
میں بچ بھی جاتا تو اک روز مرنے والا تھا
(راحت اندوری) 
...................... 
:: تسطیر ::
یہ سانحہ تو کسی دن گزرنے والا تھا
میں مُشتِ خاک سا اک دن بکھرنے والا تھا
میں جی لیا تھا مگر اہلِ خانہ کیا کرتے 
مزاج پُرسی کہاں کوئی کرنے والا تھا
چلو کہ مرنے دیا اپنے ہی وطن میں مجھے 
میں بچ بھی جاتا تو اک روز مرنے والا تھا
تسطیر نتیجۂ فکر : مسعود بیگ تشنہ
12 اگست 2020 ،اِندور ،انڈیا

 : तस्तीर बर शेर राहत इंदौरी :
ये सानिहा तो किसी दिन गुज़रने वाला था 
मैं बच भी जाता तो इक रोज़ मरने वाला था 
(राहत इंदौरी) 
:: तस्तीर ::
(नज़्रे राहत इंदौरी)
ये सानिहा तो किसी दिन गुज़रने वाला था
मैं मुश्ते ख़ाक सा इक दिन बिखरने वाला था
मैं जी लिया था मगर एहले ख़ाना क्या करते
मिज़ाज पुरसी कहां कोई करने वाला था
चलो कि मरने दिया अपने ही वतन में मुझे
मैं बच भी जाता तो इक रोज़ मरने वाला था
तस्तीर नतीजा-ए-फ़िक्र : मसूद बेग तिश्ना
20 अगस्त 2020, इंदौर, इंडिया 

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