Ghazal
Bas aap hi ka naam hamein mushtahar mila. # Lekin sabhi taraf se ye na-motabar mila.Ganga teri safai mein ji jaa'n se lag gaye. # Dil ki safai na magar kuchh hunar mila.
Patthar hawa mein khoob uchhale gaye the raat. # Dekha jo din mein jaa ke to ye tera ghar mila.
Hijrat ka hukm de diya haakim ne waqt ke. # Par muflisi mein kuchh bhi na rakht-e-safar mila.
Toofaan waqt ka tha baha le gaya sabhi. # Aaho'n mein soz ,naalo'n mein kuchh na asar mila.
Yoo'n munh chhupa ke dost na tu mn ki baat kar. # Himmat zara dikha ke nazar se nazar mila.
Ehl-e-nazar se chhupti nahi'n hein basiratei'n. # Achchhe dino'n ki aas ka kaisa samar mila.
Baad-e-wafaat chain mila 'Tishna' aakhirash. # Do gaz zameen mil gayi mitti ka ghar mila.Kalaam :Masood Baig Tishna,India,,,Taareekh Kalaam : Aug 10,2015
غزل
بس آپ ہی کا نام ہمیں مشتہر ملا # لیکن سبھی طرف سے یہ نا معتبر ملا
گنگا تیری صفائی میں جی جاں سے لگ گئے # دل کی صفائی کا نہ مگر کچھ ہنر ملاپتھر ہوا میں خوب اچھالے گئے تھے رات # دیکھا جو دن میں جا کے تو یہ تیرا گھر ملا
ہجرت کا حکم دے دیا حاکم نے وقت کے # پر مفلسی میں کچھ بھی نہ رخت سفر ملا
طوفان وقت کا تھا بہا لے گیا سبھی # آہوں میں سوز ،نالوں میں کچھ نہ اثر ملا
یوں منھ چھپا کے دوست نہ تو من کی بات کر # ہمّت ذرا دکھا کے نظر سے نظر ملا
اہل نظر سے چھپتی نہیں ہیں بصیرتیں # اچچھے دنوں کی آس کا کیسا ثمر ملا
بعد وفات چین ملا 'تشنہ' آخرش # دو گز زمین مل گئ ،مٹی کا گھر ملا
کلام :مسعود بیگ تشنہ ،انڈیا ،،،تاریخ کلام : 10 اگست 2015
बस आप ही का नाम हमें मुश्तहर मिला # लेकिन सभी तरफ़ से ये ना-मोतबर मिला .
गंगा तेरी सफ़ाई में जी जां से लग गए # दिल की सफ़ाई का ना मगर कुछ हुनर मिला .
पत्थर हवा में ख़ूब उछाले गए थे रात # देखा जो दिन में जा के तो ये तेरा घर मिला .
हिजरत का हुक्म दे दिया हाकिम ने वक़्त के # पर मुफ़्लिसी में कुछ भी न रखत-ए-सफ़र मिला .
तूफ़ान वक़्त का था बहा ले गया सभी # आहों में सोज़ ,नालों में कुछ न असर मिला .
यूं मुंह छुपा के दोस्त न तू मन की बात कर # हिम्मत ज़रा दिखा के नज़र से नज़र मिला .
एहल-ए-नज़र से छुपती नहीं हैं बसीरतें # अच्छे दिनों की आस का कैसा समर मिला .
बाद-ए-वफ़ात चैन मिला 'तिश्ना' आखिरश # दो गज़ ज़मीन मिल गई मिटटी का घर मिला .
कलाम :मसूद बेग 'तिश्ना',इंडिया ,,,तारीख कलाम : 10 अगस्त 2015
ग़ज़ल
बस आप ही का नाम हमें मुश्तहर मिला # लेकिन सभी तरफ़ से ये ना-मोतबर मिला .
गंगा तेरी सफ़ाई में जी जां से लग गए # दिल की सफ़ाई का ना मगर कुछ हुनर मिला .
पत्थर हवा में ख़ूब उछाले गए थे रात # देखा जो दिन में जा के तो ये तेरा घर मिला .
हिजरत का हुक्म दे दिया हाकिम ने वक़्त के # पर मुफ़्लिसी में कुछ भी न रखत-ए-सफ़र मिला .
तूफ़ान वक़्त का था बहा ले गया सभी # आहों में सोज़ ,नालों में कुछ न असर मिला .
यूं मुंह छुपा के दोस्त न तू मन की बात कर # हिम्मत ज़रा दिखा के नज़र से नज़र मिला .
एहल-ए-नज़र से छुपती नहीं हैं बसीरतें # अच्छे दिनों की आस का कैसा समर मिला .
बाद-ए-वफ़ात चैन मिला 'तिश्ना' आखिरश # दो गज़ ज़मीन मिल गई मिटटी का घर मिला .
कलाम :मसूद बेग 'तिश्ना',इंडिया ,,,तारीख कलाम : 10 अगस्त 2015
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