Thursday, November 20, 2014

FAIZ AHMED FAIZ KI NAZR : TAZMEEN BAR GHAZAL E FAIZ फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की नज़्र : तज़मीन बर ग़ज़ल-ए- फ़ैज़یض احمد فیض کی نذر: تضمین بر غزل فیض

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की नज़्र : तज़्मीन  बर ग़ज़ल-ए- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ فیض احمد فیض کی نذر :تضمین  بر غزل فیض

इक आग सी है जान के अंदर लगी हुई। اک آگ سی ہے جان کے اندر لگی ہوئی

सुनने को भीड़ है सर ए मह्शर लगी हुई।سننے کو بھیڑ ہے سرِ محشر لگی ہوئی

तोहमत तुम्हारे इश्क़ की हम पर लगी हुई। تہمت تمہارے عشق کی ہم پر لگی ہوئی 

 

मंज़र येह देख ले ,ज़रा पल भर को ठहर भी। منظر یہ دیکھ لے ،ذرا پل بھر کو  ٹھہر بھی 

रिन्दों के दम से आतिश ए मै के बग़ैर भी। رندوں کے دم سے آتشِ مۓ کے بغیر بھی 

है मै कदे में आग बराबर लगी हुई। ہے مۓ کدے میں آگ برابر لگی ہوئی 

 

ये कुश्त ओ खूं का सोख़्ता मंज़र ,ये रंग ओ बू। یہ کشت و خوں کا سوختہ منظر'یہ رنگ و بو 

आबाद कर के शहर ए ख़मुशान् हर एक सू। آباد کر کے شہرِ خموشاں ہر ایک سو 

किस खोज में है तेग़ ए सितमगर लगी हुई। کس کھوج میں ہے تیغِ ستمگر لگی ہوئ

ज़ुल्म ओ सितम् के वार बा हर गाम झेल कर। ظلم و ستم کے وار بہ ہر گام جھیل کر 

जीते थे यूं तो पहले भी हम जां पे खेल कर। جیتے تھے یوں تو پہلے بھی ہم جاں پے کھیل کر 

बाज़ी है अब के जान से बढ़ कर लग हुई। بازی ہے اب کے جان سے بڑھ کر لگی ہوئی 

 

'तिश्ना 'मिली है कैसी सज़ा मैं भी देख लूँ। تشنہ 'ملی ہے کیسی سزا میں بھی دیکھ لوں

लाओ तो क़त्ल नामा मेरा मैं भी देख लूँ। لاؤ تو قتل نامہ مرا، میں بھی دیکھ لوں 

किस किस की मोह्र है सर ए महज़र लगी हुई। کس کس کی مہر ہے سرِ محضر لگی ہوئی


शायर :मसूद बेग 'तिश्ना ',इंदौर ,इंडिया। شاعر :مسعود بیگ 'تشنہ'،اندور ،انڈیا 

नोट :माहनामा `रूबी `के जुलाई 1979 के शुमारे में छपी  फ़ैज़ अहमद फैज़  की ग़ज़ल पर  उन्ही दिनों मैं ने ये तज़्मीन लिखी थी।

نوٹ : ماہنامہ `روبی ` کے جولائی ١٩٧٩ کے شمارے میں چھپی فیض احمد فیض کی غزل پر انہی دنوں میں نے یہ تضمین  لکھی تھی

 

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  2. ماہنامہ `روبی ` کے جولائی ١٩٧٩ کے شمارے میں چھپی فیض احمد فیض کی غزل پر انہی دنوں میں نے یہ تضمین لکھی تھی

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