Tuesday, June 5, 2018

Kashmiri naujawanoN ke naam کشمیری نوجوانوں کے نام

:: کشمیری نوجوانوں کے نام ::
یہ سرحدوں کے جھگڑے، یہ مزہبی تعصب
گمراہ دین و دنیا جھگڑیں تو کیا تعججب
جنت نظیر تھا جو یہ کاشمیر اپنا
اب بن گیا جہنم ، ٹوٹا حسین سپنا
یہ مزہبی تعصب، یہ انگریزی سیاست
کتنی بڑی تھی آفت، کتنی بڑی ہے آفت
اس دور کی سیاست میں گر اعتدال ہوتا
 یہ ملک تب نہ بنٹتا ، ایسا نہ حال ہوتا
نہرو ، پٹیل پہلے ہی طے کر چکے تھے سب کچھ
ماونٹ بیٹن کے رنگ میں رنگ بھر چکے تھے سب کچھ
جناح کو لامحالہ کرنا پڑا تھا دستخط
ایسا پڑا تھا پھندا ، ایسی پڑی تھی آفت
گھس پیٹھیئے قبیلے کشمیر میں گھسے تھے
ماونٹ بیٹن کے منھ پر تالے مگر پڑے تھے
ماونٹ بیٹن دونوں کی فوجوں کے تھے کمانڈر
تھی سوچی سمجھی سازش ، کسی بات کا نہ تھا ڈر
یہ تھے کرشن مینن جو بھول کر گئے تھے
یو این او پہنچ گئے تھے ، دنیا سے ڈر گئے تھے
تب ہی سے آج تک ہے جھگڑے کی یہ کہانی
ہے حریت پسندوں کی اس میں گل فشانی
یہ ہے جہاد کیسا ، کیسی یہ حریت ہے
اور قوم کے بھلے کی کیا اس میں مصلحت ہے
نفرت بھرے دلوں سے بےسمت جا رہے ہیں
یہ نوجواں سیاست کے کام آ رہے ہیں
"مزہب نہیں سکھاتا آپس میں بیر رکھنا "
یہ سرحدیں بنانا ،نفرت سے پیر رکھنا
مانا تمہارے گھر ہیں ان گولیوں سے چھلنی
مانا تمہارے دل ہیں ان بولیوں سے چھلنی
دن رات کا یہ منظر تم کو بھی سالتا ہے
اور شک کا بھاری تمغہ، دہشت کو پالتا ہے
فوجوں کے زیر سایہ کب تک رہےگا کوئی
یہ ان کی بالادستی کب تک سہے گا کوئی
یہ لاٹھیاں ، یہ پتتھر، گرینیڈ اور برچھی
 صورت یہ باغیانہ بالکل نہیں ہے اچھی
ہاتھوں  میں کام مانگو، محنت کا جام مانگو
تعلیم و روزگار و امن دوام مانگو
کلام : مسعود بیگ تشنہ

:: कश्मीरी नौजवानों के नाम ::
यह सरहदों के झगड़े, यह मज़हबी तअस्सुब.
गुमराह ए दीन ओ दुनिया झगड़ें तो क्या तअज्जुब.
जन्नत नज़ीर था जो यह काशमीर अपना.
अब बन गया जहन्नुम, टूटा हसीन सपना.
यह मज़हबी तअस्सुब, यह अंग्रेज़ी सियासत.
कितनी बड़ी थी आफ़त, कितनी बड़ी है आफ़त.
उस दौर की सियासत में एतेदाल होता.
तो मुल्क तब ना बंटता, ऐसा ना हाल होता.
नेहरू, पटेल पहले ही तय कर चुके थे सब कुछ.
माउंट बेटन के नक़शे में रंग भर चुके थे सब कुछ.
जिन्ना को ला मुहाला करना पड़ा था दस्‍तख़त.
ऐसा पड़ा था फंदा ऐसी पड़ी थी आफ़त.
घुसपैठिए क़बीले कश्मीर में घुसे थे.
 माउंट बेटन के मुंह पर ताले मगर पड़े थे.
माउंट बेटन दोनों की फौजों के थे कमांडर.
थी सोची समझी साजिश किसी बात का ना था डर.
यह थे कृष्ण मेनन जो भूल कर गए थे.
यू एन ओ पहुंच गए थे, दुनिया से डर गए थे .
तब ही से आज तक है झगड़े की यह कहानी.
है हूर्रियत पसंदों की इस में गुल फ़ीशानी.
यह है जिहाद कैसा? यह कैसी हूर्रियत है?.
और क़ौम के भले की क्या इस में मसलिहत है.
नफ़रत भरे दिलों से बे सिम्त जा रहे हैं.
ये नौजवां सियासत के काम आ रहे हैं.
" मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना ".
ये सरहदें बनाना, नफ़रत से पैर रखना.
माना तुम्हारे घर हैं इन गोलियों से छलनी.
माना तुम्हारे दिल हैं इन बोलियों से छलनी.
दिन रात का यह मंज़र तुम को भी सालता है.
और शक का भारी तमगा दहशत को पालता है.
फौजों के ज़ेरे साया कब तक रहेगा कोई.
और इन की बाला दस्ती कब तक सहेगा कोई.
ये लाठियां, ये पत्थर, ग्रेनेड और बरछी.
सूरत यह बागियाना बिल्कुल नहीं है अच्छी.
हाथों में काम मांगो, महनत का जाम मांगो.
तालीम ओ रोज़गर ओ अमने दवाम मांगो.
कलाम : मसूद बेग तिश्ना



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