अपनी आज़ादी की कीमत ,अपना ख़ूँ ,अपना वतन
हम नहीं चाहते किसी कीमत पे भी लूटता चमन
सरहदों के निगहबाँ ऐ संतरी तुझ को सलाम
हम को प्यारी ये ज़मीन,ये आसमान ,गंग-ओ-जमन !!
हमने किस कीमत पे जीती अपनी आज़ादी की जंग
देश का बंटवारा झेला ,देखा बरबादी का रंग
आम जंता अब भी दुखियारी है तीनो देश में
आम जंता अब भी रहना चाहती हैं संग संग!!
हम नहीं चाहते किसी कीमत पे भी लूटता चमन
सरहदों के निगहबाँ ऐ संतरी तुझ को सलाम
हम को प्यारी ये ज़मीन,ये आसमान ,गंग-ओ-जमन !!
हमने किस कीमत पे जीती अपनी आज़ादी की जंग
देश का बंटवारा झेला ,देखा बरबादी का रंग
आम जंता अब भी दुखियारी है तीनो देश में
आम जंता अब भी रहना चाहती हैं संग संग!!
No comments:
Post a Comment